कोयला गैसीकरण : स्वच्छ ऊर्जा | Coal Gasification

कोयला गैसीकरण मतलब कोयला को संश्लेषण गैस में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। जो हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड का मिश्रण है।

कोयले गैसीफिकेशन प्रक्रिया में कोयले को ऑक्सीजन, भाप या कार्बन डाइऑक्साइड के द्वारा ऑक्साइड किया जाता है। इसमें कोयले को जलाया नहीं जाता, आसान भाषा में समजे तो इसे आंशिक जलाकर इससे उत्पन्न होनेवाली ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है।

कोयला गैसीकरण तकनीक साधारण कोयला जलाने के प्रक्रिया से अधिक कार्यक्षम होती है। क्योंकि इसमें प्रभावी रूप से दो बार गैस का उपयोग कर सकते है। इस प्रक्रिया में कोयले को अशुद्धियों से साफ़ किया जाता है और बिजली पैदा करने के लिए टर्बाइन में निकाल दिया जाता है। इसके बाद, गैस टरबाइन से निकलने वाली गर्मी को पकड़ा जा सकता है और भाप टरबाइन-जनरेटर के लिए भाप उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।

कोयला गैसीकरण संयंत्र एक पारम्परिक कोयला बिजली संयंत्र की तुलना में संभावित रूप से 50% या उससे अधिक कार्यक्षमता कार्य कर सकता है।

कोयला को बिजली की आपूर्ति के लिए एक उपयुक्त ऊर्जा स्त्रोतों में से गिना जाता है, जिसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। देश भर में लगभग आधी से ज्यादा बिजली इससे निर्माण होती है। लेकिन जब इसका अधिकांश हिस्सा पारंपरिक कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में जलाया जाता है, तो कोयले को भी बिजली, हाइड्रोजन और अन्य ऊर्जा उत्पादों में बदलने के लिए गैस में बदल दिया जाता है।

कोयला गैसीकरण जीवाश्म ईंधन को जलाने के बदले इसे रासायनिक रूप से सिंथेटिक प्राकृतिक गैस (SNG) में बदल दिया जाता है।
यह प्रक्रिया पुरानी और दशकों से चली आयी हुई है। हालाँकि समय में गैस की कीमतों पर यह एक अच्छा उपाय है। साथ ही कोयला गैसीकरण प्रदुषण की समस्याओंको दूर करने में मदद करता है।

जानते है इसके फायदे और नुकसान

नुकसान

  • यह कार्बन डाइऑक्साइड का अधिक उत्सर्जन करता है। इसीलिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का खतरा बना हुआ है।
  • कोयला गैसीफिकेशन के संयंत्र पारंपरिक बिजली संयंत्र से अधिक महंगे है।

फायदे

  • बिजली उत्पन्न करने के लिए कुशल तकनीक
  • स्थानीय प्रदुषण समस्याओं से दूर रखने में मददगार
  • कोयला के ट्रांसपोर्टेशन से कोयला गैस का ट्रांसपोर्टेशन अधिक सस्ता
  • स्टील कंपनियों के लागत में कटौती लाता है।

भारत सरकारद्वारा कोयला गैसीफिकेशन में कई दस्तावेज जारी किये जा रहे है। सरकार का उद्द्येश्य है की साल 2030 तक कोयले के गैसीफिकेशन के जरिये एथेनॉल, मीथेनॉल और सिंथेटिक गैसों का बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाये।

गैसीफिकेशन का इतिहास काफी पुराना है। अठारासौ के दशक में इसकी शुरुवात हुई थी। पहला पेटेंट जर्मनी के lurji gmbh को मिला था। इसके बाद यूरोप और अमेरिका में इस तकनीक का काफी पैमाने पर उपयोग हुआ। अब इस तकनीक का बड़ा विकास हुआ है।

भारत ने 2030 तक गैसीफिकेशन का 100 मीट्रिक टन का उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
भारत सरकार के लक्ष्य के साथ 15 प्रतिशत मेथिनॉल पेट्रोल में मिलाया जा सकता है और इसका बड़ा स्रोत कोयला गैसीफिकेशन है। भारत में 2003 से पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथीनोल मिलाया जाता आ रहा है और सरकार ने 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथीनोल मिलाने का लक्ष्य सेट किया हुआ है। एथीनोल को बड़ी आसानी से सिंथेटिक गैसों से बनाया जाता है, ये सिंथेटिक गैस कोयला गैसीफिकेशन से बनती है।
इसके आलावा हाइड्रोजन,यूरिआ और DAP जैसे चीजें जो खेती में इस्तेमाल होतो है, वो भी कोयला गैसीफिकेशन से बनायीं जाती है। स्टील इंडस्ट्री में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

भारत में इसका उपयोग पिछले कई दशकों में शुरू हुआ है। 1960 के दशक में झारखंड के सिंदरी में पहली गैसीफिकेशन यूनिट खुली थी। फिर बाद में वह बंद हुई। जिंदाल ने ओडिशा के अंगुल में प्लांट लगवाया था लेकिन वो भी बंद हो गया। इसके बाद वर्तनाम इस दिशा में काफी प्रगति हुई है। भारत में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में मौजूदा प्लांट उपस्थित है।

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