Art Form Of India – Nirmal Painting from Telangana

निर्मल पेंटिंग भारत के तेलंगाना के निर्मल जिले की एक पारंपरिक भारतीय लोक कला है। पेंटिंग प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके बनाई गई हैं और विभिन्न प्रकार के विषयों को चित्रित करती हैं, जिनमें धार्मिक आंकड़े, भारतीय पौराणिक कथाओं के दृश्य और रोजमर्रा की जिंदगी शामिल हैं। निर्मल शैली की विशेषता इसके चमकीले रंगों, जटिल विवरण और नाजुक ब्रशवर्क के उपयोग से और भी बेहतर बनती है।

Nirmal Painting
Source : cultureandheritage.org

निर्मल पेंटिंग का इतिहास

निर्मल कला का जन्म 14वीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है की 14वीं शताब्दी में कारीगरों द्वारा इसका विकास हुआ था, जिन्हे नक्काश से जाना जाता है। 14वीं शताब्दी में काकतीय राजवंश थी।

शुरुवाती समय में यह कला लकड़ी और किल्ले के दीवारों पे की जाती थी। फिर कुछ शतकों बाद निजाम शासकोंद्वारा इसे संरक्षित किया गया। निजाम के राजा ने निर्मल से कुछ कारीगर लाए और हैदराबाद में शिल्प की स्थापना की। और अपने राज्य की कला और संस्कृति को बढ़ावा देने और शाही दरबार के मनोरंजन के साधन के रूप में कला का विकास किया गया था। इसीलिए निर्मल चित्र कला पे मुग़लों का प्रभाव देखने मिलता है।

Nirmal Painting
Source: cultureandheritage.org

पेंटिंग की प्रक्रिया

इसके लिए इस्तेमाल होनेवाले रंगों और अन्य सामग्री के लिए गोदावरी नदी के किनारे मिलनेवाले रंगीन पत्थर और प्राकृतिक पौधों का इस्तेमाल होता था। शुरुवात में टेला पोंकी पेड़ की सफेद लकड़ी को पेंटिंग के लिए लेते थे, जो पेंटिंग को उत्कृष्ट दर्जा दिलाता था। पर समय के साथ इसे सागौन की लकड़ी का इस्तेमाल होने लगा। कभी कभी ग्राहक के पसंद के अनुसार लकड़ी को बदला जाता था।

वर्तमान समय में, ऑइल पेंट, एक्रोलिक रंग और स्प्रे का वापर होता है। पारंपरिक लकड़ी के बजाय चिकनी लकड़ी और मिश्रित चमकीले रंगों का इस्तेमाल अक्सर होता है।

हाल के वर्षों में, भारत सरकार और अन्य संगठनों ने इस पारंपरिक कला रूप को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के प्रयास किए हैं।

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